Sunday 26 February 2012

yaaron

by Raman Pathak on Monday, August 29, 2011 at 11:19pm ·
एक अंजाना ऐहसास न जाने क्योँ हँसाता है,न चाहुँ फिर भी आँख भर जाता है,बिती बातेँ यारोँ की याद बनकर गुनगुनाता है।
जी करता है लौट जाऊँ यारोँ की महफिल मेँ,पर राहेँ वीराना लगती है तो कदम खुद सहम जाता है,दिल मेरा रोऐ बार बार और खुद ही पुकारता है,
लौट आओ ऐ यारोँ मुझको संभालो,ये पाठक भुल के सारे मजबुरीयोँ को तेरे पास आना चाहता है।






नोटः दोस्तोँ ये मेरे बेँजीन हाउश के सभी यारोँ को समर्पित है.। i miss u very much my resonating element of benzene house.

No comments:

Post a Comment