Saturday 30 July 2011

डर गया यारोँ

कुछ पल लोगोँ को न चाहते हुए भी याद करना परता है।ऐसा ही मेरे साथ हुआ एक घटना है जिसे मैँ चाहुँ भी तो भुला नहीँ सकता,हुआ यूँ की मेरा कलकत्ता मेँ कांसलिँग था मेरे मन का सारा ट्रेड भरता जा रहा था मेरा हर्ट बीट बिल्कुल डायरेक्टली प्रोपोशनल था 4 टाईम्स आफ नम्बर आफ भेकेन्ट सीट।मैँ जितना उस दिन डर रहा था शायद कोई मौत के करीब होने पर भी न डरा होगा क्योँकि मेरे कैरियर से जुरी हुई है मेरे माँ पापा की उम्मीदेँ और उनके जिवन का सबसे बरा सपना।अब मेरा नम्बर आने वाला था मैँने रामजी का नाम लिया और बस उनसे एक सीट के लिए फरियाद किया जो उन्होँने पुरा किया।ये डर मैँ कभी नहीँ भुल सकता यारोँ आज मैँ जान गया कि डर के आगे जीत है।



--"रमन पाठक"

Wednesday 13 July 2011

फिर आयी याद यारोँ की

मेरी जिँदगी मेँ मस्ती के मामले मेँ "भागलपुर"का एक अहम भुमिका है।अब चलते हैँ कहानी कि ओर......
तिलकामाँझी मेँ सुरखिकल के एक छोटे से कमरे से शुरु होती है मेरे और मेरे कमीने दोस्तोँ की दास्ताँ।

परिचय
पहले सभी कमीने का परिचय करादुँ -----
*सुमित-ये महापुरुष श्क्ल से पुरा शरीफ एवं शाँत दिखते हैँ मगर इनकी कमिनेपंथी की महानता कहानी मेँ पता चलेगा।
*आदित्य-हमारे टीम का बतिस्टा।भगवान का दिया सबकुछ है इनके पास भगवान का दिया सबकुछ है सिवाय दिमाग के।
*सत्यम-टीम का स्मार्ट परन्तु भाभी का चहेता।
*राहुल-हमारा देवानंद कभी दिमाग युज करना पाप समझता था।
*शाहिन-ये ग्रुप मेँ श्वीट पोइजन से विख्यात हैँ।
*रमन-मैँ अपनी महानता क्या लिखुँ, कहानी मेँ पता चलेगा।
*विकाश-मेरा चहेता
भाग-1
आज मैँने सुमित से बोला के यार होस्टल की जिँदगी बहुत जी ली अब कहीँ बाहर रुम लिया जाए तो उसने सहमति इसप्रकार जताई मानो किसीने उससे कह दिया हो कि जा तु अमर है।
फिर हम सभिके ईक्षानुसार सुरखिकल मेँ एक मकान किराए पे लिया गया जिसका बाद मेँ हमलोगोँ ने बेँजीन हाउस के रुप मेँ नामांकरण किया।हमलोग अपने अपने पसँद के कमरे मेँ शिफ्ट हो गए।मैँ और विकाश,सत्यम और राहुल,आदी और शाहीन एवँ सुमित एक जुनियर के साथ रूममेट बने।दिन मस्ती मेँ कटने लगा ईस दर्मयान सबसे प्यार मेरा आदि के साथ बढने लगा?अरे अरे गलत मत सोचो यार मेरा मतलब है कि न जाने कितनी बार मेरा उससे मारपीट हुआ परन्तु मैँ कहीँ भी जाता था तो मेरे साथ आदि और शाहिन जरुर होता था।इसका एक कारन था मेरा फिजुलखर्ची मगर न जाने क्या बात थी शायद दोस्तोँ के कमीनेपंथी मेँ प्यार छुपा होता है क्योँकि उनके शाथ फिजुलखर्ची मेँ मजा आता था।अगर कोई फिल्म रीलिज होता था तो पहले शो मेँ हम तीनोँ जरुर होते थे क्योँकि शाला शाहिनवा ये जान गया था कि फिल्म देखना मेरी कमजोरि है।वो चुपके से मेरे पास आता था और उस फिल्म की ईतनी बराई करता था कि मुझे कहना परता था शाहिन प्लीज चलो न फिल्म देखने और वो जाने के लिए हाँ कहने से पहले तीन चार शर्त मनवाता था कि पाठक आज का सारा खर्च तुझे देना है सिवाय हाँ कहने के मेरे पास कोई रास्ता नहीँ था क्यौँकि अकेला फिल्म देखने पे शाहिन का जोर से हाल मेँ हल्ला सुनने को नहीँ मिललता।जब हमदोनोँ जाने लगते थे तब आदि का ईमोशनल अत्याचार के कारण उसे साथ लेना परता था और दुसरा कारण ये भी था कि आदी के शाथ होने से कौई छू भी नहीँ सकता था भगवान ने एसा बदन दिया था उसे।फिर हमतीनोँ आने के बाद उसका कापी दो तीन दिन तक तो कमसेकम करते थे।
ये थी हमतीन का दास्ताँ ए बयाँ अब आइए देखते हैँ सत्यम कि एक महानता।
एकदिन हमारा एक मित्र शुभम हमारे रुम आया कुछ देर गप मारने के सुभम ने बोला कि रमन मेरा एक जानपहचान का लरका है जिसे तुझे पढाना है बोल पढाएगा तो मै सोचने लगा क्योँकि मैँmdpsमेँ पढाने जाता था और टाईम का अभाव था फिर मूझे याद आया कि सत्यम पढाना चाहता था तो मैँ बोला सत्यम तु पढाएगा तो वौ तैयार था।फिर मैँ और सत्यम शुभम के साथ बच्चे के यहाँ गए जाते हि बच्चे के पिताजी के शाथ बात पक्की कर आने लगे तो आवाज आयी चाय पी लिजिए आवाज औरत की थी जो बच्चे की माँ थी।हमलोगोँ के लिए वही औरत चाय लेकर आयी जो बहुत अच्छी थी। अब हमलोग अपने कमरे मेँ बैठकर मस्तीयोँ की बाते कर रहे थे कि तभी सत्यम बोल परा यार पाठक वो औरत कितनी अच्छी थि मैँ तो पक्का उसे पटाऊँगा ईतना सुनने के बाद सभी जोर से हँहने लगे शिवाय शुभम के पुछने पे उदाशी मेँ बोला वो मेरी चाची थी?इतने के बाद सारे चुप मगर मेरि हँसी और जोर हो गयी फिर हम सब जमीन पे लोट पोट होकर खिलखिलाने लगे नारा था sattu tusi great ho और ऐसे थे हमारे सत्यमजी।
यारोँ बाँकी का अगले भाग मेँ लिखुँगा। जिसमेँ और भी सुहाने पल है।
--------"रमन पाठक"

Sunday 10 July 2011

रोना नहीँ।सोना नहीँ

आज सभी के मन की इच्छा है कि वो ऊँचाई को चुमे मगर एक गलत कदम तख्त पलट देती है।इसलिए दोस्तोँ जो कुछ सोचो बस उसको पाने को हद से गुजर जाओ,क्योँकि न जाने कब कोई नयी उलझन आ जाऐ। संस्क्रत मेँ एक कथन है :मनसाचिँतितं कार्यँ वाचा नैव प्रकाश्येत,मन्त्रवदरक्ष्येत गुढंकार्येचापि नियोजयेत॥
मतलब मन मेँ सोचे काम को वानी द्वारा प्रकट नहीँ करना चाहिए,परन्तु उसे मन्त्र की तरह गुप्त रखकर कठिन कार्योँ को करना चाहिए। फिर देखिए मंजील कैसे कदम चुमती है।:------"रमन पाठक"

Thursday 7 July 2011

Why Amitabh bachchan is a superstar

There are millions of actor in the world bt one get the honour of the "star of the millenium".And that one stands for the great Amitabh.
Amitabh got success among all bcoz he knows how to respect the character n he used feel that himself as those characters who get supply to him. "Agnipath",PAA and Black is the example of his talent. long live amitabh....

Raman pathak will b rockstar of the writing n acting world.

Many person used to think in their badtime that now they have no ideas for doing something for their survival.BT raman pathak has written a lots of story n created a lots of stage event for those who r interested to get rid from their troubles.

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