Sunday 10 July 2011

रोना नहीँ।सोना नहीँ

आज सभी के मन की इच्छा है कि वो ऊँचाई को चुमे मगर एक गलत कदम तख्त पलट देती है।इसलिए दोस्तोँ जो कुछ सोचो बस उसको पाने को हद से गुजर जाओ,क्योँकि न जाने कब कोई नयी उलझन आ जाऐ। संस्क्रत मेँ एक कथन है :मनसाचिँतितं कार्यँ वाचा नैव प्रकाश्येत,मन्त्रवदरक्ष्येत गुढंकार्येचापि नियोजयेत॥
मतलब मन मेँ सोचे काम को वानी द्वारा प्रकट नहीँ करना चाहिए,परन्तु उसे मन्त्र की तरह गुप्त रखकर कठिन कार्योँ को करना चाहिए। फिर देखिए मंजील कैसे कदम चुमती है।:------"रमन पाठक"

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