Tuesday 18 October 2011

खुद को पहचानो

किसी जगह को विराना या खाली देखकर लोगोँ के जुबान से हमेशा यही सुनता आ रहा हुँ की ये जगह सुनसान है,मगर कोई ये क्योँ नहीँ सोचता है कि ऐसे जगहोँ को किसी की जरुरत है किसी का इंतजार है।उसी तरह आज वो दौर आ गया है कि किसी को किसी के अकेलापन या तन्हाई से कोई मतलब नहीँ है,मगर हाँ यदि कोई गाना आपने अपने दर्द और तन्हाई को बयाँ करने के लिए गाया हो तो उसे काफी श्रोता मिल जाएगा।यदि श्रोताओँ की सँख्याँ काफी बढ जाए तो ये कभी ना सोचना की आपके दर्द से सभी को सहानुभुति है इसलिए लोगोँ की संख्याँ आपके तराने को सराह रही है,मगर सच्चाई तो ये है की कहीँ न कहीँ मन के किसी कोने मेँ अपनी दर्द को याद कर उसे महसुस करने के लिए वो आपके तराने का मदद ले रही है।ये दुनियाँ इतनी आसानी से किसी को स्वीकार नहीँ करती मेरे दोस्त ये तब ही संभव है जब आप इसके लिए कुछ अलग करते हो।मैँ अक्शर देखता हुँ को लोग अपने आप को कोसते रहते हैँ कि मैँ ये ना कर सका मैँ वो न कर सका,इसका एक मात्र कारण है कि उसने वो करना चाहा जिसके लिए वो बना ही नहीँ है।एक बात तो तय है की फालतु का कोई भी जमीँ पर नहीँ आया है सब एक दुसरे से अतुल्य है बस जरुरत है खुद को पहचानने का की कौन है वो खुद।खुद को पहचानने का एक ही उपाय है कि अपने अंदर झाँक के देखो कि कौन सा ऐसा काम है जो उससे बेहतर कोई नहीँ कर सकता है,बस उसी काम को करने मेँ लग जाए सफलता ही नहीँ उसकी चरम सीमा कदम चुमेगी।