Friday 11 May 2012

जिन्दगी कलम ही तो है।

हमारी जिन्दगी अपनी मस्ती जीती है,कभी नहीँ फिकर इसे कोई राह ताक रहा है, निगाहेँ बिछाए,सपने सजाए बेटा कह पुकार रहा है। कभी तो सोचो जिन्दगी की स्याही बार बार कौन भर रहा है,पल भर सोचूँ पल भर फिकर करूँ फिर मस्ती मेँ जीता हूँ। फिर उनकी कराहोँ से ख्याल आता है,कि वो तो मेरे दाता हैँ।मैँ तो कलम उनकी सपनोँ का जिससे वो सपनोँ की पंक्ति लिख रहा है। स्याही उनकी,कलम भी उनका,सपने उनके,सपनोँ की रेखाऐँ उन्हेँ ही तो खीँचनी है, फिर ये क्योँ ना सोचूँ की ईन्सान माँ-बाप के कलम ही तो हैँ..... ना जानूँ कितनेँ अरमान मन बिछाऐ जी रहा है,कष्टोँ को ना जानेँ क्या सोच कर सह रहा है, कहीँ ये तो नहीँ की मुझे उनके सपनेँ सजानेँ है,अब तो डरता हूँ अपनी हरकतोँ से की कहीँ उनके सपनेँ टूट ना जाऐँ, फिर खुद को हौसला देता हूँ ये सोचकर की जीवन कलम ही तो है। जब तक वो स्याही दे रहा है,उनके सपनेँ भी तो उम्मीदोँ से भर रहा है। फिर ना जानेँ कब ये वक्त की चँगुल मुझे ये मौका दे की मैँ साबित कर दूँ...ये जीवन कलम ही तो है.......... ............RAMAN PATHAK NOTE: NO BODY IS THERE ON THE EARTH WHO CAN'T LOVE THERE PARRENTS, BCOZ OUR EXISTENCE IS DUE TO OUR PARRENTS....... अपील:दोस्तोँ मैँनेँ समाज मेँ देखा है कि कुछ लोग अपने माता पिता से बहुत बततमीजी से पेश आते हैँ,so b ready to read my new blog on the topic of parrents.....COMING SOON