कामेडी की दुनियाँ मेँ एक नया धुम बनके उभरेगा यह कहानी। आइए कहानी की ओर चलते हैँ---
यह कहानी एक ऐसे शख्स मुरारी पे आधारित होगी जो सोचता तो है की कुछ ऐसा करे ताकि कम से कम महल्ले के जो लोग उसका मजाक उराते हैँ वो इसे भी दिमाग से परिपूर्ण समझे।दरअसल उस बेचारे ने एक ही गलती किया अपनी प्रेमिका से ही शादि करके।अब जब इसे एक मल्टीनेशनल कंपनी मेँ काम मिल गया है तो उसकी पत्नी चाहती है की वो एक प्रोफेशनल पहलवान बनेँ और wweमेँ खली को पछारे और जीते।क्योँकी उसकी पत्नी का सपना था कि जो उसका पति हो वो सबसे ताकतवर हो मगर एक बार टी.वी पे खली को जीतते देख लेती है और मनमेँ बसा लेती है की उसका पति खली से भी ताकतवर होगा।अब कुछ दिनोँ तक इसी तरह कहानी आगे बढती है मगर मजे वाली बात तो तब आती है जब मुरारी को पता चलता है की उसे बवासीर हो गया है। कहानी मेँ काफी टर्नीँग पोइंट होगेँ जो मजेदार एवँ चटपटी होगी।
Tuesday 23 August 2011
Monday 15 August 2011
ऐ वतन
हमारा देश तो 1947मेँ सिर्फ अँग्रेजोँ के चँगुल से आजाद हो गया।लेकिन क्या ये स्वतन्त्रता है?बिल्कुल नहीँ यार क्योँकि आज भी वो शख्श आजाद नहीँ जिसे दुनियाँ गरीब कहती है।वो तो आज भी अपने से ज्यादा पैसे वाले से दबे हुऐ आवाज मेँ बातेँ करता है और यदि अपने अधिकारोँ के लिये आवाज उठाने की हिम्मत करता भी है तो ना जाने कितनी मुसिबतोँ का सामना करना परता है उन्हेँ।इसलिये उनका आजाद इन बेरियोँ से होना बहुत जरुरी है और उन्हेँ आजादी सिर्फ वो शख्श दे सकते हैँ जो नारे तो आजादी की लगाते हैँ और खुद ही अपने से कम पैसे वाले को कमजोर और गरीब समझते हैँ।अरे ये अमीर क्या जाने की क्या कारण है कि आज भी वो गरीब है।इसलिये आज स्वतन्त्रता दिवस के दिन आइए हमसब मिलकर कसम खायेँ कि ऐ वतन तेरे सभी लालेँ आज से आजाद है।ये संभव है अगर हम सब उनको आजाद होने मेँ उनकी मदद करेँ।क्योँकि अब नहीँ गवारा कि कोई बाहर वाला हमारे घर मेँ आके हमेँ धमकाए।
जय हिन्द।
"रमन पाठक"
जय हिन्द।
"रमन पाठक"
Friday 12 August 2011
जोकर
सुना है सभी को खुशियाँ देना सबके बस की बात नहीँ,
सभी के गम को अपना समझना सबके बस की बात नहीँ,
खुशियाँ देने वाले कहलाते हैँ खुदा के फरिश्ते,फरिश्तोँ से खुद जुर जाते हैँ सभी के रिश्ते,
हम हैँ तो खुशियाँ है सब चेहरे पे हँसी है,हम नहीँ तो सब अपने गम को लेकर दुखी हैँ।
मैँ सबको हँसाता हुँ सब हमपे हँसते हैँ,सभी को हँसाने के लिए मैँ खुद बन जाता हुँ मुद्दा क्योँकि मैँ हुँ जोकर।
नोट; प्यारे मित्रोँ यदि कोई किसी को खुश करने के लिए कोई बेवकुफी के हद को भी जाता है तो उसे बेवकुफ नहीँ समझना चाहिए क्योँकि वह कुछ भी कर सकता है।
सभी के गम को अपना समझना सबके बस की बात नहीँ,
खुशियाँ देने वाले कहलाते हैँ खुदा के फरिश्ते,फरिश्तोँ से खुद जुर जाते हैँ सभी के रिश्ते,
हम हैँ तो खुशियाँ है सब चेहरे पे हँसी है,हम नहीँ तो सब अपने गम को लेकर दुखी हैँ।
मैँ सबको हँसाता हुँ सब हमपे हँसते हैँ,सभी को हँसाने के लिए मैँ खुद बन जाता हुँ मुद्दा क्योँकि मैँ हुँ जोकर।
नोट; प्यारे मित्रोँ यदि कोई किसी को खुश करने के लिए कोई बेवकुफी के हद को भी जाता है तो उसे बेवकुफ नहीँ समझना चाहिए क्योँकि वह कुछ भी कर सकता है।
Subscribe to:
Posts (Atom)