सड़क किनारे बैठ हाथ मैं फैलाता रहा,
कोई थाम ले मेरा हाथ मैं चिल्लाता रहा......
सभी ने दिया कुछ सिक्के मेरे हाथ में,
अपनी किश्मत पे पछताता रहा.......
आश लगाए आज फिर बैठा फुटपाथ पे,
फिर कितने मुशाफिर आए पर छोड़ते गये मेरे हालात पर.....
अब सिक्के को ही अपनी किश्मत बना बैठा,
और अमिरी की दुनियाँ छोड़ सड़क को अपना घर बना बैठा.....
ऐ गरीबी मिटाने वाले अमीर सुनो,
ये खत्म ना तमाशा होगा....
किशी अनाथ को गोद लेकर तो देखो,
गरीब और गरीबी का तभी खत्म तमाशा होगा......
.....................................................................RAMAN PATHAK
कोई थाम ले मेरा हाथ मैं चिल्लाता रहा......
सभी ने दिया कुछ सिक्के मेरे हाथ में,
अपनी किश्मत पे पछताता रहा.......
आश लगाए आज फिर बैठा फुटपाथ पे,
फिर कितने मुशाफिर आए पर छोड़ते गये मेरे हालात पर.....
अब सिक्के को ही अपनी किश्मत बना बैठा,
और अमिरी की दुनियाँ छोड़ सड़क को अपना घर बना बैठा.....
ऐ गरीबी मिटाने वाले अमीर सुनो,
ये खत्म ना तमाशा होगा....
किशी अनाथ को गोद लेकर तो देखो,
गरीब और गरीबी का तभी खत्म तमाशा होगा......
.....................................................................RAMAN PATHAK