by Raman Pathak on Wednesday, July 20, 2011 at 10:30am ·
शहर की गलियोँ से जब भी गुजरता हुँ न जाने क्योँ दिल सहम जाता है,
एक तरफ ऊँची इमारतेँ, और एक तरफ सरकोँ के बसेरोँ को देखकर दिल दहल जाता है।
किमती कारोँ मेँ पिज्जा,बरगर,कुल्फी खाते बच्चे फिर भी कुछ पाने की ललक तो देखो,
दुजा ओर जामुन की टोकरी लिए बैठे बच्चे,आँखोँ मेँ उनके बिक जाने का चमक तो देखो।
शायद किस्मत ही करती दो रीत है,
इसलिए तो एक ओर अमीरी का आशियाँ,तो दुजा तरफ गरीबी और हाथोँ मेँ भीख है।
एक तरफ ऊँची इमारतोँ मेँ एसी मेँ कमाये कोई, पर फिर भी उनके कुछ न होने का वहम तो देखो,,
दुजा ओर कूल्फी चाट के ठेले से कमाकर, रुखी रोटीयोँ मेँ सब कुछ पा जाने का करम तो देखो।
करम के आगे खुशियाँ भी अपना डेरा डाल जाता है,
खुदा भी तो उसके ही करीब होना चाहता है।।
RAMAN PATHAK
i cant blv dat u wrt dis...gd bless u my dear bro & may u hv a shinning futur in d poetic wrld
ReplyDeletethanx dear....abhi bht kuchh baanki hai....
Deletejabardast bhai..........jara iska saransh v bta do bhai
ReplyDeleteShahin bhai kabhi fursat me milo jarur bata dunga.
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