Wednesday 13 July 2011

फिर आयी याद यारोँ की

मेरी जिँदगी मेँ मस्ती के मामले मेँ "भागलपुर"का एक अहम भुमिका है।अब चलते हैँ कहानी कि ओर......
तिलकामाँझी मेँ सुरखिकल के एक छोटे से कमरे से शुरु होती है मेरे और मेरे कमीने दोस्तोँ की दास्ताँ।

परिचय
पहले सभी कमीने का परिचय करादुँ -----
*सुमित-ये महापुरुष श्क्ल से पुरा शरीफ एवं शाँत दिखते हैँ मगर इनकी कमिनेपंथी की महानता कहानी मेँ पता चलेगा।
*आदित्य-हमारे टीम का बतिस्टा।भगवान का दिया सबकुछ है इनके पास भगवान का दिया सबकुछ है सिवाय दिमाग के।
*सत्यम-टीम का स्मार्ट परन्तु भाभी का चहेता।
*राहुल-हमारा देवानंद कभी दिमाग युज करना पाप समझता था।
*शाहिन-ये ग्रुप मेँ श्वीट पोइजन से विख्यात हैँ।
*रमन-मैँ अपनी महानता क्या लिखुँ, कहानी मेँ पता चलेगा।
*विकाश-मेरा चहेता
भाग-1
आज मैँने सुमित से बोला के यार होस्टल की जिँदगी बहुत जी ली अब कहीँ बाहर रुम लिया जाए तो उसने सहमति इसप्रकार जताई मानो किसीने उससे कह दिया हो कि जा तु अमर है।
फिर हम सभिके ईक्षानुसार सुरखिकल मेँ एक मकान किराए पे लिया गया जिसका बाद मेँ हमलोगोँ ने बेँजीन हाउस के रुप मेँ नामांकरण किया।हमलोग अपने अपने पसँद के कमरे मेँ शिफ्ट हो गए।मैँ और विकाश,सत्यम और राहुल,आदी और शाहीन एवँ सुमित एक जुनियर के साथ रूममेट बने।दिन मस्ती मेँ कटने लगा ईस दर्मयान सबसे प्यार मेरा आदि के साथ बढने लगा?अरे अरे गलत मत सोचो यार मेरा मतलब है कि न जाने कितनी बार मेरा उससे मारपीट हुआ परन्तु मैँ कहीँ भी जाता था तो मेरे साथ आदि और शाहिन जरुर होता था।इसका एक कारन था मेरा फिजुलखर्ची मगर न जाने क्या बात थी शायद दोस्तोँ के कमीनेपंथी मेँ प्यार छुपा होता है क्योँकि उनके शाथ फिजुलखर्ची मेँ मजा आता था।अगर कोई फिल्म रीलिज होता था तो पहले शो मेँ हम तीनोँ जरुर होते थे क्योँकि शाला शाहिनवा ये जान गया था कि फिल्म देखना मेरी कमजोरि है।वो चुपके से मेरे पास आता था और उस फिल्म की ईतनी बराई करता था कि मुझे कहना परता था शाहिन प्लीज चलो न फिल्म देखने और वो जाने के लिए हाँ कहने से पहले तीन चार शर्त मनवाता था कि पाठक आज का सारा खर्च तुझे देना है सिवाय हाँ कहने के मेरे पास कोई रास्ता नहीँ था क्यौँकि अकेला फिल्म देखने पे शाहिन का जोर से हाल मेँ हल्ला सुनने को नहीँ मिललता।जब हमदोनोँ जाने लगते थे तब आदि का ईमोशनल अत्याचार के कारण उसे साथ लेना परता था और दुसरा कारण ये भी था कि आदी के शाथ होने से कौई छू भी नहीँ सकता था भगवान ने एसा बदन दिया था उसे।फिर हमतीनोँ आने के बाद उसका कापी दो तीन दिन तक तो कमसेकम करते थे।
ये थी हमतीन का दास्ताँ ए बयाँ अब आइए देखते हैँ सत्यम कि एक महानता।
एकदिन हमारा एक मित्र शुभम हमारे रुम आया कुछ देर गप मारने के सुभम ने बोला कि रमन मेरा एक जानपहचान का लरका है जिसे तुझे पढाना है बोल पढाएगा तो मै सोचने लगा क्योँकि मैँmdpsमेँ पढाने जाता था और टाईम का अभाव था फिर मूझे याद आया कि सत्यम पढाना चाहता था तो मैँ बोला सत्यम तु पढाएगा तो वौ तैयार था।फिर मैँ और सत्यम शुभम के साथ बच्चे के यहाँ गए जाते हि बच्चे के पिताजी के शाथ बात पक्की कर आने लगे तो आवाज आयी चाय पी लिजिए आवाज औरत की थी जो बच्चे की माँ थी।हमलोगोँ के लिए वही औरत चाय लेकर आयी जो बहुत अच्छी थी। अब हमलोग अपने कमरे मेँ बैठकर मस्तीयोँ की बाते कर रहे थे कि तभी सत्यम बोल परा यार पाठक वो औरत कितनी अच्छी थि मैँ तो पक्का उसे पटाऊँगा ईतना सुनने के बाद सभी जोर से हँहने लगे शिवाय शुभम के पुछने पे उदाशी मेँ बोला वो मेरी चाची थी?इतने के बाद सारे चुप मगर मेरि हँसी और जोर हो गयी फिर हम सब जमीन पे लोट पोट होकर खिलखिलाने लगे नारा था sattu tusi great ho और ऐसे थे हमारे सत्यमजी।
यारोँ बाँकी का अगले भाग मेँ लिखुँगा। जिसमेँ और भी सुहाने पल है।
--------"रमन पाठक"

1 comment:

  1. So funny.....
    Wishing u guys happiness always...
    - Harsh Bachchan

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