"मैं तपता रहा ,पग सहमा सहमा रुकने सा लगा ,
पर डरा नहीं मैं, ख़ुद को अपने हालात समझाने लगा ,
मुझे तो लड़ना था अपनों से,जिसने मुझे ललकारा सदा,
याद है वो दिन जब,
आँखों से बहता आँसू,बिना चीखे पीता रहा,
मैं तपता रहा,पग सहमा सहमा रुकने सा लगा "।1।
"तकिये को भिंगो रखा था नयन नीर से,
अपने आँसू छुपा रखा था ज़माने की भीड़ से,
किसी को परवाह कहाँ थी मेरे जज़्बातों की,
वो रुलाते रहे और मैं हँसता रहा ".....।2।
"अब देखो तो कभी मेरे क़रीब आकर,
क्यों दूरी बना बैठे वो अपने,मेरी कामयाबी से घबराकर,
मैं उस दिन भी कहाँ रोया था,जब मैं उनके करीब था,
वो क़िस्मत की बात थी,की उस वक़्त मैं गरीब था..."।3।
.........."रमण पाठक"...
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